आयु:सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धना: |
रस्या: स्निग्धा: स्थिरा हृद्या आहारा: सात्त्विकप्रिया: || 8||
आयु-सत्त्व-आयु में वृद्धि; बल-शक्ति; आरोग्य स्वास्थ्य; सुख-सुख; प्रीति–संतोष; विवर्धनाः-वृद्धि; रस्याः-रस से युक्त; स्निग्धाः-सरस; स्थिरा:-पौष्टिक; हृद्याः-हृदय को अच्छे लगने वाले आहारा:-भोजन; सात्त्विक-प्रिया सत्त्वगुणी को प्रिय लगने वाले।
BG 17.8: सत्त्वगुणी लोग ऐसा भोजन पसंद करते हैं, जिससे आयु, सद्गुणों, शक्ति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता तथा संतोष में वृद्धि होती है। ऐसे खाद्य पदार्थ रसीले, सरस, पौष्टिक तथा प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट होते हैं।
Start your day with a nugget of timeless inspiring wisdom from the Holy Bhagavad Gita delivered straight to your email!
चौदहवें अध्याय के छठे श्लोक में श्रीकृष्ण ने व्याख्या की है कि सत्त्व गुण शुद्ध, प्रकाशवान तथा शांत है और यह प्रसन्नता तथा संतोष की भावना उत्पन्न करता है। सत्व गुण में खाद्य पदार्थों का भी वैसा ही प्रभाव होता है। उपरोक्त श्लोक में इन खाद्य पदार्थों का वर्णन 'आयुः सत्त्व' के साथ किया गया है जिसका तात्पर्य आयु बढ़ने से है। इन पदार्थों से स्वास्थ्य, सद्गुण, प्रसन्नता तथा संतोष प्राप्त होता है। ऐसे खाद्य पदार्थों में अनाज, दालें, सेम, फल, सब्जियाँ, दुग्ध तथा अन्य शाकाहारी पदार्थ सम्मिलित हैं। अतः शाकाहारी आहार, सत्वगुणों को विकसित करने के लिए लाभकारी है। सात्त्विक गुण से युक्त अनेक चिंतकों तथा दार्शनिकों ने इतिहास में इस विचार को बार-बार दोहराया है-
"शाकाहार का प्रचलन बढ़ रहा है, मस्तिष्क की स्पष्टता तथा भय ने मनुष्य को शाकाहारी बनने की प्रेरणा दी है। मांस का भक्षण करना हत्या है-बेंजामिन फ्रैंकलिन"
"क्या यह धिक्कार की बात नहीं है कि मनुष्य मांसाहारी जीव है? यह सत्य है कि जानवरों का शिकार करके मनुष्य अच्छी तरह से जीवनयापन कर सकता है किन्तु यह अधम है। मैं मानता हूँ कि मानव जाति उन्नति के क्रम में जानवरों को खाना छोड़ देते हैं। उसी प्रकार जैसे कि सभ्य लोगों के सम्पर्क में आने से जनजातियों ने एक-दूसरे को मारकर खाना छोड़ दिया है-हेनरी डेविड थोरो (वाल्डेन)" ।
"शाकाहार ने हमें मानसिक रूप से अशक्त तथा कार्य करने में अक्षम बना दिया है। मैं किसी भी अवस्था में मांसाहार को उचित नहीं समझता हूँ-महात्मा गांधी"
पाइथागोरस ने भी कहा है कि "मेरे मित्रों, अपने शरीर को मांसादि खाद्य पदार्थों से दूषित मत करो। हमारे पास धान्य तथा सेब आदि उपलब्ध हैं। ऐसी सब्जियाँ हैं जिन्हें अग्नि पर रखकर पकाया तथा नरम किया जा सकता है। इस पृथ्वी के पास अखाद्य पदार्थों का समृद्ध भंडार है और यह तुम्हें ऐसे भोज्य पदार्थ उपलब्ध करवाती है जिसमें कोई रक्त अथवा हत्या वाली वस्तु सम्मिलित नहीं है। केवल कुछ जंगली जानवर ही मांस से अपनी क्षुधा शांत करते हैं, क्योंकि घोड़े (अश्व), मवेशी तथा भेड़े भी घास पर ही आश्रित हैं।"
जॉर्ज बर्नाड शॉ ने कहा है कि "मैं अपने उदर को मृत पशुओं का कब्रिस्तान नहीं बनाना चाहता हूँ।"
पशुओं की हिंसा के संबंध में गोवध जघन्य अपराध है। गाय मानव जाति के लाभ हेतु दूध प्रदान करती है इसलिए यह माता के तुल्य है। दूध देने में अक्षम गायों को मारना एक असंवेदनशील, असभ्य और अकृतज्ञतापूर्ण कृत्य है।